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राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका और समाज में युवाओं की भूमिका | Speech by Kajal Sah | Kolkata |


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राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका और समाज में युवाओं की भूमिका पर स्लोगन | Speech by Kajal Sah | Kolkata | युवा वह अवस्था होती है जब कोई लड़का बचपन की उम्र को छोड़ धीरे-धीरे वयस्कता की ओर बढ़ता है। इस उम्र में अधिकांश युवा लड़कों में एक जवान बच्चे की जिज्ञासा और जोश तथा एक वयस्क के ज्ञान की उत्तेजना होती है। किसी भी देश का भविष्य उसके अपने युवाओं पर निर्भर होता है।

युवा राष्ट्र के किसी भी विकास की नींव रखता है। युवा एक व्यक्ति के जीवन में वह मंच है, जो सीखने की कई क्षमताओं और प्रदर्शन के साथ भरा हुआ है। एक युवा मन प्रतिभा और रचनात्मकता से भरा हुआ है। यदि वे किसी मुद्दे पर अपनी आवाज उठाते हैं, तो परिवर्तन लाने में सफल होते हैं।
भारत मे युवा तनाव या असंतोष अपने सक्रिय तथा विकट स्वरूप मे दिखाई देता है। युवको मे इस व्यापक असंतोष का ही परिणाम है कि आज, स्कूलों, काॅलेजों व विश्वविद्यालयों मे हड़ताल, पथराव, सत्याग्रह, भूख हड़ताल, घेराव, दंगे-फसाद, परीक्षाओं का बहिष्कार, अध्यापकों तथा अधिकारियों के प्रति असम्मान आदि के रूप मे विस्फोट होता है।

समाज के उत्थान के लिए हमें मिलकर आगे आना होगा। हमें हक की लड़ाई लड़नी होगी और अपनी आवाज को मजबूत करना होगा, तभी हम सार्थक परिणाम ला सकते हैं। यह बात यह बात ऑल इंडिया यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट के अध्यक्ष व अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी विचार विभाग के सदस्य अनिल मसीह ने कही।

उपलब्धता व सामाजिक वातावरण के अनुरूप बदलती है । रोजगार की जदोजहद, सघन प्रतिस्पर्धा, व दबाव के चलते नशों की ओर रूख, मुक्त संचार व्यवस्था से भटकाव वादी शक्तियों का परम आकर्षक व अधिकांश के लिए नित्यप्रति जीवन यापन ही प्राथमिकता, जैसी चुनौतियां आज के युवा वर्ग के लिए अत्यन्त दबावपूर्ण वातावरण निर्मित कर रही है ।
युवा पीढ़ी: 
किसी भी देश व समाज को बनाने या बिगाडऩे में उस देश की युवा पीढ़ी की मुख्य भूमिका होती है। युवा पीढ़ी में न केवल जोश व उत्साह होता है बल्कि उनमें नए विचारों की सृजनात्मक व परिर्वतन लाने वाली दक्षता भी होती है। ... हमारे देश की कुल आबादी का लगभग 65 प्रतिशत युवा है जो 35 वर्ष की आयु से कम है।

युवाओं पर सामाजिक संगठन का प्रभाव 

आज के भागदौड़ और स्वार्थलोलुप जीवन में 'निर्माण' जैसे संगठन युवाओं को उनकी सामर्थ्‍य को पहचानने, उदाहरण प्रस्‍तुत करने और सामाजिक कार्य के प्रति एक सकारात्मक दृष्टि प्रदान करता है। भारत के समाज सुधारकों एवं स्‍वतंत्रता संग्राम के नायकों ने हमें, खुद से बढ़कर, सामाजिक समस्याओं में उद्देश्य तलाशना सिखाया है।

युवा  संवेदनशील होते हैं

युवावस्था अनेक कारणों से संवेदनशील अवधि होती है। इस अवधि में कोई व्यक्ति अपने शरीर में होने वाले अनेक जैविक परिवर्तनों के साथ सामंजस्य बैठाने की कोशिश करता/ करती है, जिनका व्यक्ति की सेहत और पहचान के बोध पर असर होता है।
युवाओं की भूमिका
युवाओं की भूमिका


युवा मनुष्य राष्ट्र की प्रगति में सक्रिय योगदान कर सकते हैं

ये देश के विकास के लिए बहुत आवश्यक है, यह तभी संभव हो सकता है, जब देश में अनुशासित, समय के पाबंद, कर्तव्यपरायण और ईमानदार नागरिक हों। हमें जरूरतमंद लोगों की मदद करनी चाहिए। परिवार एवं आसपास के लोगों से मेलजोल और समन्वय के साथ रहना चाहिए। इससे परिवार और समाज में शांति, आपसी प्रेम और परस्पर विश्वास की रसधार बहेगी।

हमें ऐसे कार्यक्रमों व नवयुवकों की सहायता से ही राष्ट्र का निर्माण करना चाहिए और इस सबके पीछे मूलतः हमारे वरिष्ठ नागरिकों का मार्गदर्शन स्वाभाविक है। सर्वोदय, सबकी एक साथ उन्नति तभी सम्भव है जब आप अपने स्वय के चरित्र निर्माण स्वयं सफलता प्राप्त करने का प्रयासकर दूसरों को भी सफल होने में सहायक हों।

छात्र असंतोष क्या है?

छात्र असंतोष का आशय हैं छात्रों का वर्तमान शिक्षा एवं शिक्षा प्रणाली से असंतुष्ट होना. ... ऐसे में राजकीय उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश न मिलने की स्थिति में छात्रों को विवश होकर निजी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेना पड़ता हैं.
सामाजिक न्याय से क्या समझते हैं?

सामाजिक न्याय से आशय एक ऐसे न्यायपूर्ण समाज की स्थापना से है जिसमें सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ न्यूनतम हों, समाज 'समावेशी' हो और संसाधनों का वितरण सर्वमान्य स्वीकृति के आधार पर हो।
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