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Script kanaklata barua in hindi एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कनकलता बरुआ and Biography

Script kanaklata barua in hindi एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कनकलता बरुआ and Biography
Script kanaklata barua in hindi एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कनकलता बरुआ and Biography: ©Provided by Bodopress

Script kanaklata barua in hindi एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कनकलता बरुआ

असम की शहीद कनक लता का नाम बहुत कम लोग लेते हैं। हमारे देश के पूर्वी क्षेत्र के राज्य से केवल कनक लता ही वीर नायिका हैं। असम की स्वतंत्रता सेनानी कनकलता बरुआ, जिन्हें बीरबाला और शहीद भी कहा जाता है, एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता और AISF नेता थे, जिन्हें ब्रिटिश पुलिस ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय ध्वज वाले जुलूस का नेतृत्व करते हुए गोली मारकर हत्या कर दी थी ।


श्रीमती कर्णेश्वरी और श्रीकृष्ण कांत बरुआ के परिवार में 22 दिसंबर, 1924 को गोहपुर में जन्मीं अपने माता-पिता दोनों को तेरह साल की उम्र में ही खो दिया था। हालांकि वह एक संयुक्त परिवार में रहती थी, लेकिन उसे अपने छोटे भाई और बहन की देखभाल के लिए तीसरी कक्षा के बाद अपने स्कूल से बाहर छोड़ना पड़ा । कहा जाता है कि उनके पूर्वज अहोम राजाओं के दरबार में मंत्री थे।

बचपन से ही वह स्वतंत्रताआवण की ओर खिंचे चले आते थे और विदेशी शासन के खिलाफ गहरी नाराजगी को पाला था । चेनीराम दास, महिम चंद्रा, ज्योति प्रसाद अगरवाल जैसे प्रमुख स्थानीय नेताओं के क्रूर उत्पीड़न ने उन्हें आगे के और चिढ़ना पारा था । कहा जाता है कि जहां उनके दादा कनकला के पक्ष में नहीं थे, वहीं उनकी सौतेली मां जोनाकी देवी बरुआ ने उन्हें गुप्त रूप से भाग लेने की अनुमति दी ।

एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में कनकलता बरुआ

1942 में जब स्वतंत्रता आंदोलन चरम पर पहुंच गया था और गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी, तब इस राष्ट्रीय उफान की देशभक्ति की लहरें व्यापक थीं और असम में भी महसूस की गई थीं। इस समय के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ' मर्सियु बाहिनी ' नामक एक मृत्यु दस्ते (करो या मरो आंदोलन) का आयोजन किया था, जिसमें से कनकलता बरुआ का हिस्सा था । इस समूह में असम के गोहपुर के उपखंड के युवा सदस्य शामिल थे।

असम राज्य में 20 सितंबर, 1942 को क्षेत्रीय पुलिस स्टेशन में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराने का उद्देश्य 'मृणालू बाहिनी' था। 17 वर्षीय कनकलता की सरासर बहादुरी से प्रेरित होकर कई निहत्थे युवकों और ग्रामीणों ने थाने के प्रभारी अधिकारी बार-बार चेतावनी के बावजूद थाने की ओर मार्च किया। पुलिस ने जुलूस को आगे बढ़ाया देखते हुए, पुलिस सेना को बरा  दिया था । जुलूस का नेतृत्व कर रहे कनकलता पर निशाने लगा कर, जिसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई और उसके झंडे को जमीन में ना गिरने देकर मुकुंदा कपाटी के नाम से जानने वाले एक ग्रामीण ब्यक्ति ने उठा लिया जिसे उसे भी पुलिस ने गोली मार दी । कनकलता बरुआ ने इस प्रकार अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी, जब वह केवल 17 वर्ष की थीं ।
 
इन युवक-युवतियों का समर्पण इतना तीव्र था कि उनके विरोध में वे भी मौत के डर को पार कर गए । बीरबाला कनकलता जैसे भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायकों और वीरांगनाओं के संघर्षों और विजयी करतबों को हमारी इतिहास की पुस्तकों में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। उनके लिए श्रद्धा संदर्भ के बिना लिखा इतिहास अधूरा होगा।


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