कविता: एकांत
आज मन फिर एकांत है
किसी कोने में चुपचाप
बैठा शांत है
मन में छुपा
सभी के अंदर पाप है
मुश्किल में सब पराये
और ख़ुशी में सब साथ है
मतलबी की दुनिया में
सभी ने सब को अकेला छोड़ा है
इसलिए आज मन फिर से टुटा है
किसी कोने में बैठा
चुपचाप शांत है
आज मन फिर एकांत है।
गाँधी जी के सीख को
सब ने भुलाया है
एकता के संदेश को
सभी ने मिटाया है
जियो और जीने दो का नारा
सभी ने भुलाया है
इंसानियत के पाठ को सभी ने जलाया है
इसलिए आज मन बेहद शांत है
किसी कोने में बैठा चुपचाप एकांत है।
धन्यवाद :काजल साह: मौलिक
Today my mind is lonely again quiet in a corner sitting is calm |
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