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उड़ान भरना चाह रही थी कि फेक दिया मुझ पर तेजाब जब देखा दर्पण...........

उड़ान भरना चाह रही थी कि फेक दिया मुझ पर तेजाब जब देखा दर्पण...........
उड़ान भरना चाह रही थी कि फेक दिया मुझ पर तेजाब जब देखा दर्पण....: ©Provided by Bodopress/Kajal Sah


(Wanting to fly, that threw acid on me, when saw couldn't hide myself in the mirror myself, it hurts to see your face I'll give you pain too)

काजल साह : स्वरचित

कविता: उड़ान

May 17, 2021


***उड़ान***

उड़ान भरना चाह रही थी 

कि फेक दिया मुझ पर तेजाब

खड़ी हो ही रही थी कि

मिटा दिया मेरी पहचान 

जला दिया मेरे चेहरे को 

और मिटा दिया मेरे सपनों को

घुट रहा है दम मेरा

अपने चेहरे को देखकर

जब देखा दर्पण में अपने आप को

नहीं छुपा पाई खुद को 

दर्द हो रहा है अपने चेहरे को देखकर 

मैं दूंगी दर्द तुम्हें भी 

मेरे सीने में जल रही है आग

अब उसी आग में जलना होगा

तुम्हें भी ... हमेशा के लिए

क्योंकि ...

अब भरने ही वाली हूं नई उड़ान।


**धन्यवाद : काजल साह : स्वरचित**


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