-->

Publish Poetry: माइक्रोसॉफ्ट और डिजिटल हिंदी पोएट्री राइटर काजल साह 'मजबूर नहीं' और 'किसने जाना है'?

 

माइक्रोसॉफ्ट और डिजिटल हिंदी पोएट्री राइटर काजल साह 'मजबूर नहीं' और 'किसने जाना है'?
माइक्रोसॉफ्ट और डिजिटल हिंदी पोएट्री राइटर काजल साह 'मजबूर नहीं' और 'किसने जाना है'?

कविता - मजबूर नहीं


गरीब हूं इसीलिए सब से दूर हूं

मजाक बनाते हैं लोग मेरा

कर देते हैं अपमान मेरा

झुका देते हैं मुझे अपने कदमों पर

नहीं समझते मेरे बातों को

हर दम तौलते रहते पैसे की तराजू में

गरीब हूं मजबूर नहीं।

उनके सोचने के लिए गरीब हूं

पर मैं अपने हिम्मत के लिए अमीर हूं

उनसे बड़ा है हौसला मेरा

कुछ कर दिखाने का जज्बा है मेरा

मैं गरीब नहीं मैं दिल से अमीर हूं।


धन्यवाद 🙏 काजल साह: स्वरचित

कविता : किसने जाना है?

 


नारी का दर्द

किसने जाना है?

हर लम्हें वो रोती है

हर दर्द को वो

चुपचाप सह लेती है

अपने सपनों को मारकर

अपने बच्चे  के सपनों को

उड़ना सीखा देती है

नारी जीवन

सच में एक संघर्ष दायक कहलाता है।

अपने हिस्सा का खाना भी

अपने बच्चों को ही खिला  देती है

अपने हिस्से का इतवार भी

अपने बच्चों पर ही लुटा देती है

सारे दर्द को सहने के बाद भी

एक नारी ही कमजोर  क्यों कहलाती है।

धन्यवाद : काजल साह : स्वरचित

 

"भूखी है माँ हमारी" और "बिल्ली मौसी"

कविता : भूखी है माँ हमारी



 भूखी है माँ हमारी

किया है छठ मईया की आने की तैयारी

घर - घर बन रहे है ठकुआं खूब सारी

चेहरे पर ख़ुशी

कर रहे, सब सूरज भगवान

की आने की तैयारी

चारो तरफ बज रहे है गाने की शोर

सभी माँ पहन रखी है

लाल - लाल साड़ी

सभी लग रही है, छठी

मईया की बेटियां सारी

ना भूख की आस

ना प्यास की आस

फिर भी सह लेती है

सारे दर्द सारी।

 

धन्यवाद : काजल साह : स्वरचित

कविता : बिल्ली मौसी


बिल्ली रानी बड़ी स्यानी

दूध पीकर भाग जाती सारी

चटपट करता बिल्ली का मुँह हरदम

खा जाती है, मांस झटपट

और भाग जाती है फटफट।

बिल्ली कहलाती सब की मौसी

नहीं खाने देती हम सब को

दूध रोटी

चटर - चटर कर दूध रोटी

खा जाती सारी।

हंसती है छुप - छुप कर

गाती है म्याऊ - म्याऊ कर

नाचती है ठुमक - ठुमक कर

गाती है छमक - छमक कर

इसलिए बिल्ली रानी कहलाती

हम सब की दुलारी।

धन्यवाद : काजल साह :स्वरचित

"ख़ुशी" और "एकांत"

कविता: ख़ुशी



 

जीवन में उदास क्यों रहना

जब ख़ुशी की डलिया है तुम्हारे पास

गमों में क्यों जीना

जब रब है तुम्हारे पास

मन में अर्चन

क्यों पैदा करना

जब हिम्मत है

तुम्हारे पास

मन में व्यर्था

को क्यों साथी मान लेना

जब सभी के अर्थ है

तुम्हारे पास

जिंदगी को

गमों में

मत जीना

थोड़ा ख़ुशी

आपस में बाट भी लेना

जिंदगी के मुश्किल घड़ी पर

मुस्कुरा भी लेना।

 

धन्यवाद,: काजल साह : मौलिक

कविता : एकांत


आज मन फिर एकांत है

किसी कोने में चुपचाप

बैठा शांत है

मन में छुपा

सभी के अंदर पाप है

मुश्किल में सब पराये

और ख़ुशी में सब साथ है

मतलबी की दुनिया में

सभी ने सब को अकेला छोड़ा है

इसलिए आज मन फिर से टुटा है

किसी कोने में बैठा

चुपचाप शांत है

आज मन फिर एकांत है।

गाँधी जी के सीख को

सब ने भुलाया है

एकता के संदेश को

सभी ने मिटाया है

जियो और जीने दो का नारा

सभी ने भुलाया है

इंसानियत के पाठ को सभी ने जलाया है

इसलिए आज मन बेहद शांत है

किसी कोने में बैठा चुपचाप एकांत है।

 धन्यवाद :काजल साह: मौलिक


Post a Comment

Thanks for messaging us. If you have any doubts. Please let me know.

Previous Post Next Post

Offer

<

Mega Offer